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    परिचय

    होम्योपैथी की खोज मूल रूप से ऐलोपैथिक (एम.बी.बी.एस./एम.डी.)जर्मन चिकित्सक डा0 सैमुअल हैनिमैन (1755-1843) द्वारा की गयी थी। यह ‘‘समः’’, समम्, शमयति’’ या समरूपता’’ सिद्वान्त पर अधारित एक चिकित्सा प्रणाली है। यह दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है जिसमें किसी स्वस्थ्य व्यक्ति में प्राकृतिक रोग को अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है। जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है। होम्योपैथिक दवाओं को पौंधों, पशुओं, खनिज और अन्य प्राकृतिक पदार्थों से उर्जाकरण या अंतः शक्तिकरण नामक एक मानक विधि के माध्यम से तैयार किया जाता है। आज होम्योपैथी 85 से अधिक देशों में प्रचलित है और 100 करोड़ से अधिक लोगों के विश्वास का प्रतीक है। होम्योपैथी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में विकसित है। 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह का सफल इलाज होम्योपैथिक चिकित्सक हाॅनवर्गर द्वारा किया गया था। बंगाल में फैली हैजा की महामारी के रोकथाम में होम्योपैथिक मेडिसिन की अहम भूमिका के कारण बंगाल में होम्योपैथी फलने-फूलने लग गयी थी और आज भारत में लगभग तीन लाख से अधिक रजिस्टर्ड होम्योपैथिक चिकित्सक, 285 से अधिक होम्योपैथिक महाविद्यालय एवं 300 से अधिक होम्योपैथिक औषधि निर्माता कम्पनी उपलब्ध हैं।

    होम्योपैथिक चिकित्सा पद्वति वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं का एक हिस्सा है तथा चिकित्सालयों एवं निजी चिकित्सकों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवायें प्रदान कर रहा है। होम्योपैथी न केवल एक सफल चिकित्सा पद्यति है अपितु यह स्वस्थ जीवन शैली को भी परिलक्षित करती है। होम्योपैथिक औषधियां लगातार सार्थक हैं और इनका कोई दुष्परिणाम नहीं होता है। बच्चे, बूढे, महिलाएं एंव पुरूष सभी इन औषधियों का सेवन सुलभता से करते है एवं इन्हें कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता हैं। होम्योपैथी में लगभग 3000 औषधियां है जिनमें से लगभग अधिकतर हमारे राज्य में विद्यमान हैं।

    होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति, प्रदेश के शहरी एवं दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों तक अधिक से अधिक जनमानस को उत्तम स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिये प्रयासरत है। जिससे वह इस पद्धति का भरपूर लाभ उठा सकेंगें। स्वास्थ्य,मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। इस कथन को सत्यापित करने के लिये एक सुदृढ़ स्वास्थ्य प्रणाली की अत्यन्त आवश्यकता थी जो राज्य के ग्रामीण स्तर तक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं को उच्च बनाने के लिये उत्तरदायी हो सके। प्रदेश स्तर पर चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अतिरिक्त जनता को होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति द्वारा जनता के रोगों के उपचार, बिमारियों की रोकथाम तथा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने मे होम्योपैथी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

    पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश से वर्ष 2000 में उत्तराखण्ड राज्य का पृथकराज्य के रूप में गठन होने के फल स्वरूप उत्तराखण्ड राज्य में होम्योपैथिक (आयुष) का पृथक मंत्रालय/निदेशालय/विभागस्थापित/ विद्यमान है तथा जनपद स्तर पर भी होम्योपैथी के जनपद स्तरीय अधिकारी (कार्यालयाध्यक्षों) जिला होम्योपैथिक चिकित्साधिकारी हैं, जिनके द्वारा अपनी चिकित्सा पद्धति के जनपद स्तरीय कार्यों का संचालन किया जाता है।